36. हमारे योजनाकार तब तक लापरवाह रहते हैं, जब तक
निर्देश (प्र.सं. 121 – 128 ) नीचे दीए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए |
चेन्नई में आई बाढ़ अब उतार पर है | इस त्रासदी से निबटने में इस शहर ने जिस साहस का परिचय दिया, जिस तरह से सोशल मीडिया ने एक बार फिर बचाव के काम में अहम किरदार निभाया, बल्कि कुछ मामलों में तो जान बचाने में भी उसकी भूमिका रही, इसे देखते हुए उसकी जितनी तारीफ़ की जाए, वह कम है | इन तमाम अच्छी बातों के बावजूद इस वास्तविकता को भी नहीं झुठलाया जा सकता कि इस त्रासदी से बचा जा सकता था | चेन्नई में आई बाढ़ की असली वजह थी अड्यार नदी-बेसिन का नये हवाई अड्डे के लिए अतिक्रमण | ठीक उसी तरह, जैसे दूसरे नदी विस्तारों का आवासीय निर्माण के लिए इस्तमाल कर लिया गया है | नदी के कुदरती रास्तों को अवरुद्ध किए जाने से इसका जल आस-पास के इलाकों में उमड़ गया| जब तक प्रकृति अपना क्रोध नहीं दिखाती, हमारे योजनाकार हर जोखिम को नजरअंदाज करते रहते हैं और उस चीज की तलाश में रहते हैं, जिसे वे ले सकते हैं| हमने इसी तरह का विध्वंसक सैलाब मुम्बई में भी देखा| कुछ ही समय पहले श्रीनगर में भी ऐसी ही बर्बादी देखी| हर जगह मुख्य वजह मिली – अनियोजित शहरीकरण और बुनियादी नियमों की अनदेखी| फिरभी हर बार त्रासदी की गम्भीरता लोगों की यादों में धुँधली पड़ जाती है| चेन्नई की तरह दिल्ली में भी ऐसे सैलाब की सम्भावना है| इसलिए हमें यमुना नदी के बेसिन से छेड़छाड़ करने की ‘बुद्घिमानी’ से बचना होगा|
37. मुंबई, श्रीनगर जैसे स्थानों में बाढ़ से हुई बर्बादी के पीछे कारण था
39. "अपनी 'बुद्धिमानी' का परिचय देते हुए" -- यहाँ 'बुद्धिमानी' से लेखक का मन्तव्य है
निर्देश (प्र.सं. 121 -129) नीचे दिए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प चुनिए |
‘आदमी की तलाश’, यह स्वर अक्सर सुनने को मिलता है| यह भी सुनने को मिलता है की आज आदमी, आदमी नहीं रहा| इन्हीं स्थितियों के बीच दार्शनिक राधाकृष्णन की इन पक्तियों का स्मरण हो आया “हमने पक्षियों की तरह उड़ना और मछलियों की तरह तैरना तो सीख लिया है, पर मनुष्य की तरह पृथ्वी पर चलना और जीना नहीं सीखा|” जिंदगी के सफर में नैतिक और मानवीय उद्देश्यों के प्रति मन में अटूट विशवास होना जरूरी है| कहा जाता है – आदमी नहीं चलता, उसका विशवास चलता है| आत्मविश्वास सभी गुणों को एक जगह बाँध देता है, यानी कि विशवास की रोशनी में मनुष्य का सम्पूर्ण व्यक्तित्व और आदर्श उजागर होता है| गेटे की प्रसिद्ध उक्ति है कि जब कोई आदमी ठीक काम करता है तो उसे पता तब नहीं चलता कि वह क्या कर रहा है, पर गलत काम करते समय उसे हर क्षण यह ख्याल रहा है कि वह जो कर रहा है, वह गलत है| गलत को गलत मानते हुए भी इंसान गलत किए जा रहा है| इसी कारण समस्याओं एवं अँधेरों के अंबार लगे हैं| लेकिन ऐसा ही नहीं है| कुछ अच्छे लोग भी हैं, शायद उनकी अच्छाइयों के कारण ही जीवन बचा हुआ है| ऐसे लोगों ने नैतिकता और सच्चरित्रता का खिताब ओढ़ा नहीं, उसे जीकर दिखाया|वए भाग्य और नियति के हाथों खिलौना बनकर नहीं बैठे, स्वयं के पसीने से अपना भाग्य लिखा| महात्मा गाँधी ने इसलिए कहा कि हमें वह परिवर्तन खुद बनना चाहिए, जिसे हम संसार में देखना चाहते हैं| जरूरत है कि हम दर्पण जैसा जीवन जीना सीखें| उन सभी खिड़कियों को बंद कर दें, जिनसे आने वाली गन्दी हवा इंसान को इंसान नहीं रहने देती| मनुष्य के व्यवहार में मनुष्यता को देखा जा सके, यही ‘आदमी की तलाश’ है|
40. 'मन में अटूट विशवास होना जरूरी है|' उपयुक्त वाक्य में 'अटूट' शब्द व्याकरण की दृष्टी से है