संस्कृति और सभ्यता — ये दो शब्द है और उनके अर्थ भी अलग अलग है| सभ्यता मनुष्य का गुण है जिससे वह अपनी बाहरी तरक्की करता है| संस्कृति वह गुण है जिससे वह अपनी भीतरी उन्नति करता है , करुणा , प्रेम और परोपकार सीखता है| आज रेलगाड़ी मोटर और हवाई जहाज , लम्बी – चौड़ी सड़कें और बड़े बड़े मकान, अच्छा भोजन और अच्छी पोशाक, ये सभ्यता की पहचान है और जिस देश में इनकी जितनी ही अधिकता है उस देश को हम उतना ही सभ्य मानते है मगर संस्कृति उन सबसे कहीं बारीक़ चीज़ हैवह मोटर नहीं , मोटर बनाने की कला है , मकान नहीं , मकान बनाने की रूचि है संस्कृति धन नहीं , गुण है संस्कृति ठाठ – बाट नहीं , विनय और विनम्रता है| यह कहावत है कि सभ्यता वह चीज़ है जो हमारे पास है लेकिन संस्कृति वह गुण है जो हमसे छिपा हुआ है |हमारे पास घर होता है कपड़े- लत्ते होते है मगर ये सारी चीज़े हमारी सभ्यता के सबूत है जबकि संस्कृति इतने मोटे तौर पर दिखलाई नहीं देती, वह बहुत ही सूक्ष्म और महान चीज़ है और वह हमारी हर पसंद , हर आदत में छिपी रहती है| मकान बनाना सभ्यता का काम है , लेकिन हम मकान का कौन सा नक्शा पसंद करते है – यह हमारी संस्कृति बताती है|आदमी के भीतर काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह, और मतसर ये छ: विकार प्रकृति के दिए हुए है मगर ये विकार अगर बेरोक छोड़ दिए जाए , तो आदमी इतना गिर जाए की उसमे और जानवर में कोई भेद न रह जाए इसलिए आदमी इन विकारों पर रोक लगाता है| इन दुर्गुणों पर आदमी जितना ज्यादा काबू पता है उसकी संस्कृति भी उतनी ही ऊँची समझी जाती है|संस्कृति का स्वभाव है कि वह आदान – प्रदान से बढ़ती है जब दो देशो या जातियों के लोग आपस में मिलते है तब उन दोनों की संस्कृतियाँ एक- दूसरे को प्रभावित करती है , इसलिए संस्कृति की द्रष्टि में वह जाती या देश बहुत धनी समझा जाता है जिसने ज्यादा से ज्यादा देशो या जातियों की संस्कृतियों का लाभ उठाकर अपनी संस्कृति का विकास किया हो
1. संस्कृति सभ्यता से इस रूप में भी भिन्न है कि संस्कृति
2. संस्कृति का मूल स्वभाव है की वह